Chanakya niti | Chanakya niti gyan hindi Part 3- Entrepreneurs learner

 Note- ये सभी ज्ञान चाणक्य नीति ( Chanakya Niti )की पुस्तक से लिया गया है अतः जो भी इस पुस्तक को लेना चाहता है तो आप मुझसे संपर्क कर सकते है।

Chanakya niti | Chanakya niti gyan hindi |  चाणक्य ज्ञान हिंदी Part 3- Entrepreneurs learner
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Introduction– आज के इस तीसरा अध्याय में मै आपको Chanakya ji पंडित चाणक्य जी के द्वारा दिए गए कुछ सूत्रों को विस्तार से बताने जा रहा हूं और यहां चाणक्य जी ने कहा है कि हर कोई इस ज्ञान के द्वारा ' सर्वज्ञ ' हो सकता है। यहां सर्वज्ञ होने का अर्थ है अतीत, वर्तमान और भविष्य का। विश्लेषण करने की क्षमता प्राप्त करने को कहा है।


1. समय सब प्राणियों को अपने पेट में पचा लेता है अर्थात् सबको नष्ट कर देता है। काल ही सबकी मृत्य कारण होता है जब सब लोग सो जाते है, तो काल ( समय ) जागता रहता है। इसमेें संदेह नहीं कि काल बड़ा बलवान है काल से पार पाना अत्यंत कठिन है।
अर्थ -
व्यक्ति काल के प्रभाव से नही बच सकता , जीवों सहित सभी वस्तुएँ काल के प्रभाव से नष्ट हो जाती है। काल चक्र सृष्टि के आरंभ से लेकर प्रलय काल तक चलता रहता है। कभी नही रुकता जो उसकी उपेक्षा करता है, काल उसे पीछे छोड़कर आगे निकल जाता है। काल हम सबके साथ ऐसे खेलता है जैसे शिकार बने चूहों के साथ बिल्ली खेला करती है।

2. व्यक्ति को शेर और बगुले से एक एक, मुर्गे से दो , कौए से पाँच, कुत्ते से छः गुण सीखने चाहिए।
अर्थ -
 इस संसार की प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक प्राणी हमें कोई न कोई उपदेश दे रहे है। इन गुणों को सीखकर जीवन में सफलता , उन्नति और विकास किया जा सकता है।

(2.1)  कार्य छोटा हो या बड़ा व्यक्ति को शुरू से ही उसमे पूरी शक्ति लगा देनी चाहिए, यह शिक्षा हमें सिंह से ले सकते है। इसका भाव यह है कि व्यक्ति जो भी कार्य करे, चाहे वह छोटा हो, अथवा बड़ा , उसे पूरी शक्ति लगाकर करना चाहिए , तभी उसमें सफलता प्राप्त होती है। सिंह पूरी शक्ति से शिकार पर झपटता है- वह बड़ा हो या छोटा। बड़े को देखकर घबराता नही और छोटे की उपेक्षा नही करता। सफलता पाने के लिए प्रयास पर विश्वास आवश्यक है।

2.2 बुद्धिमान व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को वश में करके समय के अनुरूप अपनी क्षमता को तौलकर बगुले के समान अपने कार्य को सिद्ध करना चाहिए।
अर्थ -
बगुला जब मछली को पकड़ने के लिए एक टांग पर खड़ा होता है तो उसे मछली के शिकार के अतिरिक्त अन्य किसी बात का ध्यान नही होता। इसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति जब किसी कार्य सिद्धि के लिए प्रत्यन्त करे तो उसे अपनी इन्द्रियां वश में रखनी चाहिए। मन को चंचल नही होने देना चाहिए तथा चित्त ( ध्यान ) एक ही दिशा में , एक ही कार्य की पूर्ति में रहें , ऐसा प्रयास करना चाहिए। शिकार करते समय बगुला इस बात का पूरा अंदाजा लगा लेता है कि किया गया प्रयास निष्फल ( खराब ) तो  नही जाएगा।

(2.3)  समय पर उठना, युद्ध के लिए सदा तैयार रहना ये दो बाते मुर्गे से सीखनी चाहिए।

(2.4)  समय - समय पर कुछ वस्तुएँ इक्ट्ठी करना, निरंतर सावधान रहना, ढीठ होना , और किसी दूसरे पर पूरी तरह विश्वास नही करना, ये तीन बाते कौए से सीखने योग्य है।

(2.5)  बहुत भोजन करना लेकिन कम में ही संतुष्ट रहना , गहरी नीद लेकिन जल्दी से उठ बैठना, स्वामिभक्ति और बहादूरी ये 6 गुण कुत्‍ते से सीखने चाहिए।

जो व्यक्ति इन 15 गुणों को सीख लेता है अर्थात इन्हें अपने आचरण में ले आता है, वह सब कार्यों और अवस्थाओं में विजयी होता है अर्थात उसे किसी भी अवस्था में पराजय का मुख नही देखना पड़ता।

3. एक बुद्धिमान को चाहिए कि वह अपने धन को नष्ट होने  को, मानसिक दुख को , घर के दोषों को , किसी व्यक्ति द्वारा ठगे जाने और अपना अपमान होने की बात किसी पर भी प्रकट न करे किसी को भी न बताए।
अर्थ -
प्रत्येक व्यक्ति को कभी- न कभी धन की हानि उठानी पड़ती है, उसके मन में किसी प्रकार का दुख भी हो सकता है। प्रत्येक घर में कोई न कोई बुराई भी होती है। कई बार उसे धोखा देकर ठगा जाता है और किसी के द्वारा उसे अपमानित भी होता पड़ सकता है, परंतु समझदार व्यक्ति को चाहिए इन सब बातो को वह अपने मन में ही छिपाकर रखे, इन्हे किसी दूसरे व्यक्ति पर प्रकट न करें। जानकर लोग हंसी ही उड़ाते है। ऐसी स्थिति में वह स्वय उनका मुकाबला करे और सही अवसर की तलाश करता रहे।

4. अपनी पत्नी, भोजन और धन इन तीनो के प्रति मनुष्य को संतोष रखना चाहिए , परंतु विद्याध्ययन , तप और दान के प्रति कभी संतोष नही करना चाहिए।
अर्थ -
चाणक्य के अनुसार, व्यक्ति को अपनी पत्नी से संतुष्ट रहना चाहिए, अन्य स्त्रियों से संबध  बनाना अपमानित करता है। व्यक्ति को घर में जो भोजन प्राप्त होता है और उसकी जितनी आय है उसमे ही संतोष करना चाहिए। लेकिन विद्या के अध्ययन , यम - नियमों आदि के पालन और दान आदि कार्यों से कभी भी संतुष्ट नही होना चाहिए अर्थात व्यक्ति जितना अधिक अध्ययन करेगा, जितना अधिक अपने चरित्र को ऊंचा उठाने के लिए तप करेगा तथा दान आदि करता रहेगा, उससे ममुष्य को लाभ होगा। ये तीन चीजे ऐसी है , जिनसे मनुष्य को संतोष नही करना चाहिए|

5. यदि सुख की इच्छा हो तो विद्या अध्ययन का विचार छोड़ देना चाहिए और विद्यार्थी विद्या सीखने की इच्छा रखता है तो उसे सुख और आराम का त्याग कर देना चाहिए क्योंकि सुख चाहने वाले को विद्या प्राप्त नही हो सकती और जो विद्या प्राप्त करना चाहता है , उसे सुख नही मिल सकता।
अर्थ -
चाणक्य का विश्वास है कि विद्या प्राप्ति के समय विद्यार्थी को सुख- सुविधाओं की आशा नही करनी चाहिए। कठोर तप से ही विद्या की प्राप्ति हो सकती है। यदि विद्यार्थी विद्या में पारंगत होना चाहता है तो उसे निरंतर अभ्यास करना पड़ता है, जो सुख से नही हो सकता है क्या कठिनता से मिलने वाली कोई भी वस्तु मूल्यवान नही होती ? अतः विद्यार्थी को सुखु की आशा ही छोड़ देनी चाहिए अन्यथा उसे विद्या प्राप्त नही हो सकती। भोग और ज्ञान परस्पर विरोधी है।



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Conclusion- अगर आप सभी आचार्य चाणक्य जी द्वारा और भी नए नए सूत्र जानना चाहते है तो आप मुझे कॉमेंट करे जिससे मैं इस books talks की सीरीज को आगे बढ़ा सकूं और आप अपना ज्ञान बढ़ा सके, बल्कि पढ़ने से कुछ नही होगा आप इसको अपने जीवन में प्रयोग करे इससे आपको ओर भी नए परिणाम मिलेंगे।

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1 Comments

  1. rana bro very nice blog to see and people will join keep writing thoughts like this

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