Chanakya Niti | Chanakya Niti Gyan Hindi | चाणक्य ज्ञान हिंदी Part 4- Entrepreneurs learner
Note- ये सभी ज्ञान चाणक्य नीति ( Chanakya Niti )की पुस्तक से लिया गया है अतः जो भी इस पुस्तक को लेना चाहता है तो आप मुझसे संपर्क कर सकते है।
Image Source- Google |from navbharattimes |
Introduction– आज के इस चौथा अध्याय में मै आपको Chanakya ji पंडित चाणक्य जी के द्वारा दिए गए कुछ सूत्रों को विस्तार से बताने जा रहा हूं और यहां चाणक्य जी ने कहा है कि हर कोई इस ज्ञान के द्वारा ' सर्वज्ञ ' हो सकता है। यहां सर्वज्ञ होने का अर्थ है अतीत, वर्तमान और भविष्य का। विश्लेषण करने की क्षमता प्राप्त करने को कहा है।
1. जिसका बुरा करने की इच्छा हो, उससे सदा मीठी बात करनी चाहिए, जैसे शिकारी हिरण को पकड़ने से पहले मीठी आवाज में गीत गाता है।
अर्थ -
चाणक्य कहते है कि दुष्ट व्यक्ति अहित करने की इच्छा से मीठी-मीठी बाते करते है, ऐसा करके वे पहले रिझाते है फिर हानि पहुंचाते है। जुआरी पहले लाभ होने का लालच दिखाता है जिससे भोलाभाला व्यक्ति उसके जाल मे फंसकर बड़ी -सी रकम दांव में लगा देता है और अपनी हानि कर बैठता है।
2. दुष्कर्म करने के बाद पश्चाताप करने वाले मनुष्य की बुद्धि जिस प्रकार की होती है, वैसी बुद्धि यदि पाप करने से पहले भी हो जाए तो सभी को मुक्ति प्राप्त हो सकती है।
अर्थ -
मनुष्य बुरा कार्य करने के बाद पछताता है, उसे अपने किए हुए कार्य पर पछतावा होता है वह जानता है कि उसने वह किया है, जो उसे नही करना चाहिए। चाणक्य कहते है कि यादि दुष्कर्म करने से पहले ही मनुष्य के विचार वैसे ही हो जाए जैसे पश्चाताप के समय होते है , तो कोई भी दुष्कर्म न हो।
3. आने वाले कष्ट को दूर करने के लिए जो पहले से ही तैयार रहता है और जो विपत्ति आने पर उसे दूर करने का उपाय सोच लेता है , ये दोनो प्रकार के व्यक्ति अपने सुख की वृद्धि करते है अर्थात् सुखी रहते है तथा जो यह सोचता है कि जो भाग्य में लिखा है वही होगा, ऐसा व्यक्ति नष्ट हो जाता है।
अर्थ -
चाणक्य ने कहा है कि संकट आने से पूर्व जो व्यक्ति बचाव का उपाय कर लेता है और जो संकट आने पर तत्काल आत्मरक्षा का उपाय कर लेता है। ये दोनों सुख से जीवन बिताते है, परंतु जो भाग्य के लिखे के अनुसार सोचता है कि देखा जाएगा , वह नष्ट हो जाता है।
4. नीच मनुष्य देखकर दूसरे व्यक्ति के यश को बढ़ता हुआ देखकर उसकी यशरूपी कीर्ति से जलते है और जब उस पद को प्राप्त करने में असमर्थ रहते है , तब उस व्यक्ति की निंदा करने लगते है।
अर्थ -
दुष्ट व्यक्ति दूसरे को तरक्की करता देखकर उससे जलने लगते है। उसकी कीर्तिरूपी आग उन्हे जलाती रहती है। जब वे उस लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ रहते है, तब उस व्यक्ति की निंदा करने लगते है।
5. जो बाते बीत चुकी है, उन पर शोक नही करना चाहिए और भविष्य की भी चिंता नही करनी चाहिए। बुद्धिमान लोग वर्तमान समय के अनुसार कार्य में लगे रहते है।
अर्थ -
व्यक्ति को चाहिए वह बीती हुईं बातो पर शोक करने में व्यर्थ समय न गंवाए। उसे इस बात की भी चिंता नही करनी चाहिए कि आगे क्या होने वाला है। अतीत हाथ से निकल चुका है , तो भविष्य की केवल कल्पना की जा सकती है इसीलिए बुद्धिमान व्यक्ति को वर्तमान स्थितियों के अनुरूप अपने काम में लगे रहना चाहिए। इससे बीते कल में हुईं भूलो को ठीक किया जा सकता है और आने वाले कल को एक उत्तम आधार दिया जा सकता है।
6. हे मनुष्य ! यदि तू किसी एक ही कर्म द्वारा सारे संसार को अपने वश में करना है तो तू दूसरो की निदां करने वाली अपनी वाणी को वश में कर ले अर्थात् दूसरो की निदां करना छोड़ दें।
अर्थ -
दूसरो की निदां छोड़ने का अर्थ है अपनी आलोचना और दूसरो के गुणों को ग्रहण करना। सोसा करने वाला सहज रूप से विश्व को जीत लेगा।
7. जो अवसर के अनुकूल बात करना जानता है, जो अपने यश और गरिमा के अनुकूल मधुर- भाषण कर सकता है और जो अपनी शक्ति के अनुसार . क्रोध करता है, उसी को वास्तव में विद्वान कहा जाता हैं।
अर्थ -
व्यक्ति को अवसर के अनुकूल ही वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए और उस समय इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि इससे प्रतिष्ठा बढ़ेगी अथवा घटेगी। जो व्यक्ति समय के अनुकूल बात नही करता , जिसे अपने मान - अपमान का कोई ज्ञान नही या जो प्रिय भाषण अथवा मधुर-भाषण करना नही जानता, वह मूर्ख है। जो व्यक्ति समय के अनुरूप बात करता है , अपनी शक्ति के अनुसार क्रोध करता है, वही विद्वान हैं।
0 Comments